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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।

उत्तर -

समस्यायें

पंचायती राज की कुछ प्रमुख समस्यायें निम्नलिखित हैं-

(1) पंचायती राज संस्थाओं के लिये चुने गये नेताओं में से अधिकांश को साधारणतः अपनी जाति का समर्थन प्राप्त होता है। ये अक्सर अपने परम्परागत गोत्र नाते-रिश्तेदारों तथा संयुक्त परिवारों के विस्तृत सम्बन्धों के आधार पर चुनाव में विजय प्राप्त कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में नेताओं का दृष्टिकोण परम्परावादी बना रहता है और इनसे आमूल-चूल परिवर्तनों की आशा नहीं की जा सकती।

(2) ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक योग्य व्यक्ति, पंच-सरपंच, प्रधान अथवा अध्यक्ष पद के दायित्व को संभालना दलगत राजनीति के कारण पसन्द नहीं करते। कई व्यक्तियों में इन संस्थाओं की सदस्यता ग्रहण करने के पश्चात् भी इनके कार्यों के प्रति रुचि का अभाव पाया जाता है। योग्य और ध्येयनिष्ठ व्यक्तियों का अभाव भी पंचायती राज संस्थाओं के कार्य संचालन में बाधक है। इसके साथ ही, कुछ सदस्य तो इन संस्थाओं के कार्य संचालन में बाधक हैं। इसके साथ ही, कुछ सदस्य तो इन संस्थाओं को अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति का माध्यम बना लेते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि जनता में ऐसी संस्थाओं के प्रति अरुचि उत्पन्न होती है।

(3) पंचायती राज से सम्बन्धित एक अन्य समस्या वित्तीय साधनों का अभाव है। देखा यह गया है कि जिन योजनाओं के लिये राज्य सरकार से धनराशि प्राप्त हो जाती है। उनके क्रियान्वयन के सम्बन्ध में तो जनता में रुचि पायी जाती है। लेकिन शेष के रुचि का अभाव होता है। साथ ही पंचायती राज से सम्बन्धित समस्यायें स्थानीय साधनों से धन जुटाने के उद्देश्य में भी पूर्णत: सफल नहीं हुई है। पंचायत एवं पंचायत समितियाँ जनता के विरोध के भय से कर लगाने से घबराती हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें सरकार द्वारा धन पर ही निर्भर रहना पड़ता है। परिणाम यह होता है कि विकास की गति धीमी रहती है।

(4) विकास खण्ड स्तर पर विभिन्न कार्यकर्त्ताओं में जिस प्रकार के समन्वय की व्यवस्था की गयी है, उस प्रकार की व्यवस्था जिलास्तर के कार्य कर्त्ताओं में नहीं की गयी है। परिणाम यह हुआ कि विभिन्न विकास विभागों के जिला स्तर के अधिकारी किसी भी पंचायती राज संस्था के तहत अपने कार्यों में समन्वय नहीं करते हैं।

(5) पंचायती राज से सम्बद्ध सरकारी एवं गैर-सरकारी सदस्यों में तनाव पूर्ण सम्बन्ध पायें जाते हैं क्योंकि जहाँ गैर-सरकारी कार्यकर्त्ताओं में सत्ता व उत्तरादायित्व के प्राप्त होने से उत्साह है, वहाँ सरकारी अधिकारियों में उनकी प्रशासिकीय शक्ति में कमी आने से असन्तोष और कार्य के प्रति उदासीनता है।

(6) पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में राजनीतिक दलों के भाग लेने से भी ग्रामीण क्षेत्रों में दलबन्दी बढ़ती है। परिणाम यह हुआ है कि एक जाति का दूसरी जाति के साथ संघर्ष पाया जाता है और यहाँ तक कि एक जाति में ही विरोधी खड़े दिखलायी पड़ते हैं। ग्रामीण सामुदायिक जीवन में इस प्रकार का तनावपूर्ण वातावरण पंचायती राज संस्थाओं के सफलतापूर्वक कार्य-संचालन में बाधक है।

(7) पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत ग्राम सभा को शक्तिशाली बनाने का प्रयास नहीं किया गया है। एक वर्ष में एक या दो बार बैठकों की व्यवस्था मात्र से विभिन्न विकास कार्यक्रमों के प्रति जनता में रुचि और जनसहयोग हेतु तत्परता उत्पन्न नहीं की जा सकती। इसका परिणाम यह हुआ है कि ग्रामीण पुनर्निर्माण सम्बन्धी योजनाओं में आवश्यकताओं के अनुरूप जनसहयोग प्राप्त न हो सका है।

पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव
(Suggestions for Successful working Panchayati Raj Institutions)

पंचायती राज संस्थाओं के सफल संचालन के लिये निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये जा सकते हैं-

(1) ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीतिक दलों को पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में भाग लेने या अपने प्रत्याशियों को खड़े करने का अवसर नहीं दिया जाना चाहिये। लेकिन कुछ अन्य विद्वानों ने इस विचार का विरोध किया है जैसे नर्मदेश्वर प्रसाद का विचार है कि ग्रामीण स्तर पर राजनीतिक दलों की उपस्थिति को रोकना पंचायती राज और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये घातक सिद्ध होगा।

(2) अनेक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि ग्रामीण क्षेत्र में विकास कार्यक्रमों का लाभ अधिकांशतः उन्हीं लोगों को मिल पाया है जो पहले से सम्पन्न थे। वस्तुतः सामाजिक न्याय की दृष्टि से विकास योजनाओं के लाभ का वितरण सभी लोगों को समान रूप से होना चाहिये था कमजोर या गरीब वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति को ऊँचा उठाने का विशेष प्रयत्न किया जाना चाहिये।

(3) पंचायती राज संस्थाओं के सफल कार्य संचालन हेतु इनके वित्तीय साधनों को बढ़ाना नितान्त आवश्यक है। समय रहते इन्हें स्पष्टतः बता दिया जाना चाहिये कि उन्हें कितनी धनराशि कब उपलब्ध करायी जायेगी और निश्चित समय पर भी उसे उपलब्ध कराया जाना चाहिये। ऐसा होने पर ये संस्थायें अपना बजट और विकास योजनायें ठीक ढंग से बना सकेंगी।

(4) पंचायती राज की कमियाँ काफी सीमा तक हमारे देशवासियों में राष्ट्रीय चरित्र के अभाव का परिणाम है। आज इस देश का व्यक्ति अपने आप में इतना संकुचित हो गया है कि वह व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर सम्पूर्ण समाज एवं राष्ट्र के हित की दृष्टि से चिन्तन और आचरण नहीं कर पाता है। यद्यपि इसके कुछ अपवाद आवश्यक हैं आज व्यक्ति सीमित दायरे में सोचता है। क्योंकि वह परिवार, नातेदारी, गोत्र तथा जाति की संकीर्ण सीमाओं में जकड़ा हुआ है। यही कारण है कि अधिकांशतः लोगों में अपने कार्य के प्रति अरुचि और निष्ठा का अभाव पाया जाता है। यह प्रमुखतः एक मानवीय समस्या है, जिसका निराकरण चरित्र निर्माण के द्वारा ही सम्भव है।

(5) पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु यह आवश्यक है कि इनसे सम्बद्ध सरकारी अधिकारियों और जन-प्रतिनिधियों के बीच में सन्देह और अविश्वास को दूर किया जाये। ऐसा करने के लिये एक दूसरे के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को स्पष्टतः प्रभावी और पृथक्-पृथक् कार्य क्षेत्र को निर्धारित करना लाभदायक सिद्ध होगा।

(6) पंचायती राज संस्थाओं को अपने-अपने क्षेत्र में कार्य करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिये। ग्रामीणों को परम्परा से मुक्ति दिलाने और आधुनिकता की ओर अग्रसर करने हेतु यह आवश्यक है कि इन समस्याओं को कार्य सम्बन्धी पहल ( Initiative) का अधिकार प्राप्त हो। वस्तुतः पंचायती राज संस्थाओं की शक्तियों व सत्ता को स्पष्टतः निश्चित कर दिया जाना चाहिये तथा इनके कार्यक्षेत्र का निर्धारण कर देने के पश्चात् सम्बन्धित क्षेत्रों में कार्य का सम्पूर्ण दायित्व इन संस्थाओं पर छोड़ दिया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त ऊपर के स्तर की संस्थाओं को नीचे की संस्थाओं को धन और सुझावों के रूप में आवश्यक समर्थन देना चाहिये।

(7) पंचायती राज की सफलता हेतु नेतृत्व को विकसित करने हेतु विशेष प्रयत्न किये जाने चाहियें, जो जाति, गाँव, नातेदारी और संयुक्त परिवार के संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठकर व्यापक दृष्टिकोण से सोच सके, सम्पूर्ण क्षेत्र के हित की दृष्टि से प्रयत्न कर सके और ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन ला सके। वस्तुतः ग्रामीण स्तर पर अच्छे नेतृत्व अच्छे स्थानीय ऐच्छिक संगठनों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये ताकि सभी नेताओं को कार्य करने का अवसर मिल सके इसके साथ सामाजिक शिक्षा का व्यापक प्रसार भी किया जाना चाहिये

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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